औषधीय महत्व के पादप
औषधीय पादपों का महत्व उनमें पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों के कारण होता है। ये पदार्थ एल्केलॉइड्स, ग्लाइकोसाइड्स, टेनिन, रेजिन, वाष्पशील तेल, श्लेष्मा, गोंद आदि होते हैं।
पादप अपने विभिन्न भागों जैसे फल, बीज, छाल, जड़, पत्ती आदि में रासायनिक पदार्थों को संग्रहित करते हैं।
अधिकांश औषधीय पादप जंगली होते हैं।
राउल्फिया सर्पेन्टाइना Rauwolfia Serpentina
सामान्य नाम : सर्पगन्धा
उपयोगी भाग : शुष्क मूलें व उनकी छाल
यह पौधा भारत में उष्णकटिबंधीय हिमालय क्षेत्र, दार्जिलिंग, पंजाब, सिक्किम के तराई क्षेत्र, आसाम, पश्चिमी घाटों के पठारों तथा अण्डमान के ठण्डे क्षेत्रों में बहुतायात से मिलता है।
आजकल उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू एवं कश्मीर, बिहार, केरल, मध्यप्रदेश व गुजरात में इसकी खेती भी की जा रही है।
सर्पगन्धा का पौधा बहुवर्षीय झाड़ी होता है।
इसकी लम्बाई 15 से 45 सेमी होती है।
इस पादप की कन्दिल जड़ों व उनकी छाल से औषधि प्राप्त की जाती है।
इसमें लगभग 80 प्रकार के ऐल्केलॉइड्स पाये जाते हैं, जिसमें अजामेलिन, अजामेलिनिन, सर्पेन्टाइन, सर्पेन्टाइनिन, रेसरपिनिन, रेसरपिन, राउल्फिनिन, डिसरपिडिन आदि मुख्य है।
औषधीय उपयोग Medicinal Use
राउल्फिया के मुख्य औषधीय उपयोग निम्नलिखित है—
1. मानसिक रोगों एवं उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
2. इसे पागलपन की दवा भी कहते हैं क्योंकि इसका उपयोग तीव्र पागलपन को कम करने में किया जाता है।
3. सर्पदंश के प्रतिविष के रूप में तथा अनिद्रा, मिर्गी आदि के उपचार में यह उपयोगी है।
4. प्रसव काल के समय गर्भाशय संकुचन के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
5. दस्त, पेचिश एवं आंतों के दर्द में इसकी जड़ों का काढ़ा रोगी को पिलाया जाता है जो कि अत्यंत उपयोगी है।
6. यह कृमिहर होती है।
कुरकुमा लोंगा Curcuma longa
सामान्य नाम : हल्दी
उपयोगी भाग : सुखे हुए भूमिगत रूपांतरित प्रकंद (rhizome)
हल्दी उत्पादन में भारत विश्व का सबसे बड़ा देश है। भारत में इसकी खेती महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा, आन्ध्रपदेश व केरल में की जाती है।
इसका पादप एक वर्षीय शाक है तथा इसकी ऊंचाई लगभग 1 मीटर तक होती है।
हल्दी पौधे के भूमिगत प्रकन्द से प्राप्त की जाती है।
इसमें मुख्य रूप से कुरक्यूमिन (curcumin), जिन्जी बेरिन (zingiberin), अरमेरिक तेल तथा वाष्पशील तेल पाये जाते हैं।
हल्दी का पीला रंग इसमें उपस्थित कुरक्यूमिन के कारण होता है।
हल्दी के औषधीय गुण medicinal properties of turmeric
1. हल्दी रक्त शोधक, कृमिहर तथा वायुनाशक होती है।
2. सर्दी, जुकाम व खांसी में गुनगुने दूध के साथ हल्दी मिलाकर रात को सोते समय पीने से आराम मिलता है।
3. पीलिया, दमा, दस्त, ज्वर एवं यकृत रोग के रोगियों के लिए हल्दी उपयोगी है।
4. बाह्य एवं आंतरिक शारीरिक चोटों में दूध के साथ हल्दी का सेवन गुणकारी होता है।
5. त्वचा संबंधी रोगों, चोट एवं घाव पर हल्दी का लेप गुणकारी होता है।
6. सौंदर्य प्रसाधनों, उबटन आदि में भी इसका उपयोग किया जाता है।
फेरूला आसाफोइटिडा (हींग)
सामान्य नाम- हींग
उपयोगी भाग – मूल कन्दों से स्रावित ओलियोगमरेजिन
हींग भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा ईरान में पाया जाने वाला पादप है।
भारत में इसे पंजाब तथा कश्मीर में उगाया जाता है।
हींग का पादप बहुवर्षीय शाक है।
हींग इस पादप की मोटी व मांसल जड़ से प्राप्त होती है। हींग प्राप्त करने के लिए इसकी मोटी व मांसल जड़ पर कट लगाकर दूधिये रंग का तरल पदार्थ प्राप्त किया जाता है। यह दूधिया तरल पदार्थ वायु के सम्पर्क में आने पर गहरे भूरे रंग के ठोस पदार्थ में बदल जाता है। इसी गहरे भूरे रंग के ठोस पदार्थ को हींग कहते हैं।
हींग अत्यन्त कड़वा एवं तीखी गंध वाला पदार्थ होता है।
इसमें मुख्य रूप से फेरूलिक अम्ल, सुगंधित तेल जैसे- पाइनीन अम्बेलीफेरीन तथा फेरूलिक अम्ल होते हैं। इसकी गंध पाइनीन व स्वाद फेरूनिक अम्ल के कारण होता है।
हींग में कोई भी ऐल्केलॉइड नहीं पाये जाते हैं।
हींग के औषधीय उपयोग
1. हींग अपच, उदर दर्द, अजीर्ण, मंदाग्नि आदि के उपचार में अत्यन्त लाभदायक है।
2. हींग का उपयोग कब्जहर, पाचक, वायुनाशक, कृमिहर, दस्तावर एवं उत्तेजक के रूप में किया जाता है।
3. हींग पेट फूलना, श्वास नली शोध व मिर्गी, मूर्छा आदि में भी गुणकारी है।
4. हींग का मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है।
सिनकोना ओफिसिनैलिस
उपयोगी भाग : स्तम्भ की शुष्क छाल
कुनैन उत्पादन के प्रमुख देश भारत व इण्डोनेशिया है।
भारत में सिक्किम, नीलगिरी, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश व दक्षिणी भारत में कुनैन पाया जाता है।
कुनैन दक्षिणी अमेरिका की इण्डिज पहाड़ियों का मूल पादप है।
कुनैने एक सदाबहार वृक्ष होता है।
कुनैन इसकी छाल से प्राप्त की जाती है।
सिनकोना केलिसायया, सि. लेडजिरिना, सि. सक्सीरूबा, सि. रोगस्टा आदि की छाल को सुखाकर उससे ऐल्केलॉइड्स प्राप्त जाते हैं। इनमें प्रमुख ऐल्केलॉइड्स कुनैन, सिनकोनिन, सिनकोनिडीन तथा क्विनिडीन है।
कुनैन के औषधीय उपयोग
2. इसका उपयोग काली खांसी एवं तिल्ली के विवर्धन में किया जाता है।
3. कुनैन का उपयोग रोगाणुरोधी एवं कीट विकर्षक के रूप में किया जाता है।
5. गठिया एवं टॉन्सिल शोध के उपचार में उपयोगी।