• अलंकार शब्द का अर्थ है अलंकृत करने वाला या शोभा बढ़ाने वाला।
  • वह वस्तु जो किसी को सुशोभित करती है, अलंकार कहलाती है। जिस प्रकार हार-कुंडल आदि आभूषणों से नारी-शरीर की शोभा बढ़ती है, उसी प्रकार अनुप्रास, यमक, उपमा, रूपक आदि अलंकार काव्य के शब्दार्थ रूपी शरीर की सौन्दर्य-वृद्धि में सहायक होते हैं।
  • आचार्य दण्डी ने काव्य की शोभा करने वाले धर्मों को अलंकार कहा हैंः ‘काव्य शोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते।’
अलंकारों का स्वरूप :-
  • काव्य में जिस वस्तु का वर्णन किया जाता है उसे वर्ण्य, प्रस्तुत, उपमेय कहा जाता है और उसकी शोभावृद्धि के लिए कवि उन्हीं के समान जिन अन्य पदार्थों को प्रस्तुत करता है उन्हें अप्रस्तुत या उपमान कहा जाता हैं।
    अप्रस्तुत या उपमान विधान में कवि की कल्पना व भावों का योग रहता हैं, जिससे शब्द और अर्थ में चमत्कार व सौन्दर्य उत्पन्न हो जाता हैं। इस दृष्टि से अलंकारों के स्वरूप-निर्धारण में तीन बातों पर ध्यान दिया जाता हैं-
    अ. शब्द सौन्दर्य
    ब. अर्थ सौन्दर्य और
    स. शब्दार्थ सौन्दर्य अर्थात् शब्द और अर्थ दोनों का सौन्दर्य।
    इसी आधार पर अलंकारों के स्वरूप निर्धारण में तीन प्रकार के अलंकार स्वीकार किये गये हैं- 1. शब्दालंकार 2. अर्थालंकार और 3. उभयालंकार।
अलंकार का लक्षण
  • कथन के चमत्कारपूर्ण प्रकारों को अलंकार कहते हैं।
  • शब्द और अर्थ का वैचित्र्य अलंकार है।
  • काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्मों को अलंकार कहते है।
  • काव्य की शोभा की वृद्धि करने वाले शब्दार्थ के अस्थिर धर्मों को अलंकार कहते है।
अलंकारों का महत्व व उपयोगिता:-
  • अलंकार काव्य में विषयवस्तु के वर्णन को रोचक और प्रभावशाली बनाने में सहायक होते हैं। कवि सूक्ष्म और अमूर्त भावों और स्थितियों को अलंकार की सहायता से पाठक तक सम्प्रेषित करने में सफल होता है।
  • वस्तु का यथातथ्य वर्णन प्रायः नीरस और शुष्क होता है, जबकि सहज रूप में किया गया आलंकारिक वर्णन अत्यंत सरस और हृदयग्राही होता है।
    जैसे- किसी सुन्दर स्त्री के हंसने के वर्णन में कहा जाए कि उसके होठों पर दांतों की चमक बड़ी सुन्दर लग रही थी, तो कथन में कोई सरसता नहीं होगी। किन्तु जब प्रसाद जी ‘कामायनी- में श्रद्धा की मुस्कान का वर्णन उत्प्रेक्षा के सहारे निम्नलिखित पंक्तियों में करते हैं, तो पाठक उसमें तल्लीन हुए बिना नहीं रहताः-

और उस मुख पर वह मुसक्यान,

रक्त किसलय पर ले विश्राम।

अरुण की एक किरण अम्लान,

अधिक अलसाई हो अभिराम।।

श्लेष अलंकार –
  • किसी शब्द का एक बार प्रयोग होने पर भी उसके अर्थ एक से अधिक हो तो वहां श्लेष अलंकार होता है।
    जहां कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो, किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ एक से अधिक हो, वहां श्लेष अलंकार होता है।
    जैसे –
    रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
    पानी गए न ऊबरै मोती मानस चून।।
    यहां पानी के तीन अर्थ है- कांति, आत्म-सम्मान और जल। अतः श्लेष अलंकार हैं, क्योंकि पानी शब्द एक ही बार प्रयुक्त है तथा उसके अर्थ तीन है।
    ‘श्लेष’ का शाब्दिक अर्थ ‘चिपका हुआ’ होता है, अतः श्लेष अलंकार में एक ही शब्द में एक से अधिक अर्थ चिपके रहते हैं।

श्लेष अलंकार के भेद

श्लेष अलंकार दो प्रकार का माना गया है-

अ. अभंग श्लेष –
  • जहां शब्द के टुकड़े किये बिना ही उसके अनेक अर्थ निकले वहां अभंग श्लेष होता है।
    उदाहरण- ‘पानी गये न ऊबरै मोती मानस चून’
    यहां ‘पानी’ के तीन अर्थ है – कांति, आत्म-सम्मान और जल एवं ये तीनों अर्थ ‘पानी’ शब्द के टुकड़े किये बिना ही निकल आते हैं। अतः अभंग श्लेष अलंकार है।
ब. सभंग श्लेष-
  • जहां एक ही शब्द के टुकड़े करने पर उसके अनेक अर्थ निकले वहां सभंग श्लेष होता है।
    चिर जीवै जोरी जुरै, क्यों न सनेह गम्भीर।
    को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।।
  • इस दोहे में ‘हलधर’ के दो अर्थ है – बलराम और बैल। जो इस शब्द के टुकड़े किये बिना ही प्राप्त हो जाते हैं, अतः अभंग श्लेष है।
    किन्तु ‘वृषभानुजा’ के दो अर्थ करने के लिए उसे दो प्रकार से तोड़ना पड़ता है – वृषभानु+जा (वृषभानु – सुता यानी श्री राधा) तथा वृषभ + अनुजा ( बैल की भगिनी, गाय)। अतः यहां ‘सभंग श्लेष’ अलंकार है।
  • संतत सुरानीक हित जेही।
    बहुरि सक्र सम बिन बहु तेही।।
    सुरानीक = सुर+ अनीक (देवताओं की सेना)
    सुरानीक = सुरा+नीक (अच्छी शराब)
यमक अलंकार
  • यमक का शाब्दिक अर्थ है – जोड़ा
    लक्षण – जहां एक या एक से अधिक शब्दों की आवृत्ति एकाधिक बार हो और भिन्न-भिन्न स्थानों पर उसका अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहां यमक अलंकार होता है।
    उदाहरण –
    कनक-कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय। या खाये बोराय जग, वा पाये बौराय।।
    यहां ‘कनक’ शब्द दो बार प्रयुक्त हुआ है और दोनों बार उसका अर्थ भी भिन्न है अर्थात् पहले ‘कनक’ का अर्थ ‘स्वर्ण’ है एवं दूसरे ‘कनक’ का अर्थ धतूरा है।
    यमक अलंकार दो प्रकार का होता है – अभंग यमक और सभंग यमक।
    अ. जहां पर पूर्ण शब्द की आवृत्ति होती हैं, वहां अभंग होता है।
    उदाहरण- तीन बेर खाती ते वे तीन बेर खाती है।
    यहां पर ‘बेर’ शब्द दो बार आया है। पहले का अर्थ ‘बार’ और दूसरे का अर्थ ‘बोर’ नामक फल है। अतः अभंग यमक है।
    ब. जब पूरा शब्द दुबारा न आकर उस शब्द का कुछ अंश ही दुबारा आता है अथवा शब्द को तोड़कर अर्थ किया जाता है, वहां सभंग यमक होता है।
    उदाहरण-
    कर का मनका छांडि कै मन का मनका फेर।
    यहां ‘मनका’ शब्द दो बार आया है, जिसका अर्थ है माला और ‘मन का’ (हृदय का)। इस प्रकार शब्द को तोड़कर अर्थ किया गया है, अतः सभंग यमक है।
अनुप्रास
  • अनुप्रास का अर्थ होता है कि वर्णों का बार-बार प्रयोग। ‘वर्णों की रसानुकूल बार-बार आवृत्ति करना ही अनुप्रास अलंकार होता है।
    मोहनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने बिसाल।
विरोधाभास
  • जहां पर किसी पदार्थ, गुण या क्रिया में वस्तुतः विरोध न होने पर भी विरोध दिखाई पड़े वहां विरोधाभास अंलकार होता है। उदाहरणः
  • शीतल ज्वाला जलती है, ईंधन होता दृग जल का।
    यह व्यर्थ श्वास चल-चल कर करता काम अनिल का।।
  • यहां ज्वाला को शीतल कहा गया है। ज्वाला को शीतल कहना विरोधपूर्ण है। वहां वस्तुतः प्रेम की आग का वर्ण हैं जो शीतल ही होती है।
  • या अनुरागी चित्त की गति समुर्झ नहिं कोय।
    ज्यों-ज्यों बूडै स्याम रंग त्यौ-त्यौं उज्वलु होय।।
  • उपर्युक्त दोहे में श्याम ‘गुण’ द्वारा उज्ज्वल रंग (गुण) के उत्पन्न होने में विरोध है, परन्तु श्लेष द्वारा ‘श्याम’ का अर्थ श्याम वर्ण वाले श्रीकृष्ण हो जाने पर विरोध दूर हो जाता है।
मानवीकरण
  • जहां जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है, वहां मानवीकरण अलंकार होता है।
  • जैसे – फूल हंसे कलियां मुसकाई।
    जगी वनस्पतियां अलसाई, मुख धोती शीतल जल से।
    यहां फूलों का हंसना, कलियों का मुस्कराना, वनस्पतियों का शीतल जल से मुख धोना मानवीय चेष्टाएं है। अतः मानवीकरण अलंकार है।
    बीती विभावरी जाग री…
    अतिशयोक्ति – उक्ति की अतिशयता
    अतिशयोक्ति अंलकार में कोई बात बढ़ा-चढ़ाकर कर कही जाती है। इसमें उपमेय को छिपाया जाता है और उपमेय को उपमान से स्थानान्तरित कर दिया जाता है।
  • नागमती दुख विरह अपारा।
    धरती सरग जरै जेहि झारा।।

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