प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्रियों (कैबिनेट, राज्यमंत्री एवं उपमंत्री) के समूह को मंत्रिपरिषद् कहा जाता है। मंत्रिपरिषद् की रचना के विभिन्न चरण हैं—
प्रधानमंत्री की नियुक्ति
— अनुच्छेद 75(1) के अनुसार
प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी।
राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है जिसको लोकसभा में बहुमत प्राप्त है या बहुमत का विश्वास प्राप्त है।
मंत्रियों का चयन
— प्रधानमंत्री अपने पद की शपथ लेने के बाद पहला कार्य मंत्रिपरिषद् का गठन करता है।
— वह राष्ट्रपति को नाम एवं पद की सूची प्रदान कर देता है। राष्ट्रपति उन्हीं व्यक्तियों को मंत्री के रूप में नियुक्त करते हैं तथा शपथ दिलवाते हैं।
मंत्रिपद की योग्यताएं
- मंत्रिपरिषद् का सदस्य बनने के लिए आवश्यक है कि कोई व्यक्ति संसद का सदस्य हो।
यदि कोई व्यक्ति जो संसद का सदस्य नहीं है अनुच्छेद 75(5) के तहत मंत्री बनाया जा सकता है परंतु उसे 6 माह के अंदर—अंदर संसद की सदस्यता ग्रहण करनी होती है।
नोट— ए.आर. चौहान बनाम पंजाब राज्यवाद 2001 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा व्यक्ति जो एक बार संसद का सदस्य बने बिना मंत्री पद धारण कर लेता है, परंतु 6 माह के अंदर संसद का सदस्य नहीं बन पाता है ऐसा व्यक्ति जब तक संसद का सदस्य नहीं बन जाता तब तक मंत्री बनने के अयोग्य होगा।
मंत्रियों की शपथ
- अपने पद को ग्रहण करने से पूर्व प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्रियों को राष्ट्रपति के सामने तीसरी अनुसूची में वर्णित प्रारूप के अनुसार पद और गोपनीयता की शपथ लेनी होती है।
मंत्रिपरिषद् का कार्यकाल
- सामान्यत: मंत्रिपरिषद् का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, परंतु यह अनिश्चित है, क्योंकि मंत्रिपरिषद् तभी तक अपने पद पर रहती है, जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त है।
मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या
- संविधान के द्वारा मंत्रिपरिषद् की सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं की गई थी, प्रधानमंत्री अपने स्वविवेकानुसार इनकी संख्या तय करता था, परंतु 91वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 द्वारा अनु. 75 में उपखण्ड (1क) जोड़ा गया जिसके तहत मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या प्रधानमंत्री सहित निम्न सदन अर्थात् लोकसभा की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।
सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत
- अनुच्छेद 75(3) में कहा गया है कि ‘मंत्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी अर्थात् मंत्रिपरिषद् के किसी एक सदस्य के विरुद्ध अविश्वास पारित हो जाता है तो उस दशा में सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद् को त्याग पत्र देना होता है।
इसी कारण लॉर्ड मार्ले ने कहा है कि मंत्रिपरिषद् के सदस्य एक साथ तैरते हैं और एक साथ ही डूबते हैं।
परंतु प्रधानमंत्री की सलाह पर किसी मंत्री को पदच्युत किया जाता है तो सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद् का विघटन नहीं होता है। - नोट: मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है जबकि व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होती है।
प्रधानमंत्री
— संसदीय शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री का पद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पद होता है क्योंकि राष्ट्रपति केवल नाममात्र का प्रधान होता है।
— शासन की वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री के हाथ में होती है। वह मन्त्रिपरिषद की नींव का पत्थर कहा जाता है क्योंकि जिस समय प्रधानमंत्री अपने पद से त्यागपत्र दे देता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, मन्त्रिपरिषद का अस्तित्व नहीं रहता है।
प्रधानमंत्री की नियुक्ति
- संविधान के अनुच्छेद 75 (1) में कहा गया है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा परन्तु राष्ट्रपति की यह स्वविवेकी शक्ति नहीं है।
राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है जो लोकसभा में बहुमत दल का नेता होता है।
भारत में सामान्यतः प्रधानमंत्री लोकसभा से होता है, परन्तु राज्यसभा के सदस्य को भी प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है, जैसे – इन्दिरा गांधी (1986) तथा डॉ. मनमोहन सिंह (2004-2014)।
परन्तु यदि लोकसभा का बहुमत किसी ऐसे व्यक्ति का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करें, जो न तो लोकसभा का सदस्य न ही राज्यसभा का तो राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को भी प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवा सकता हे परन्तु ऐसे व्यक्ति को 6 माह के अन्दर-अन्दर संसद की सदस्यता लेना अनिवार्य होता है। जब राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर दे तो कुछ समय के लिए किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है।
प्रधानमंत्री की पदावधि
- अनुच्छेद 75 (2) के अनुसार ‘‘प्रधानमंत्री एवं उसकी मन्त्रिपरिषद् राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपना पद धारण करते हैं।’’ परन्तु व्यावहारिक स्थिति अलग है।
प्रधानमंत्री एवं उसकी मंत्रिपरिषद् तब तक अपने पद पर रहते हैं जब तक लोकसभा का विश्वास उन पर है।
परन्तु प्रधानमंत्री एवं उसकी उसकी मंत्रिपरिषद् का अधिकतम कार्यकाल 5 वर्ष से अधिक नहीं होता है।
प्रधानमंत्री के अधिकार एवं कार्य:-
- पद प्राप्ति के पश्चात् प्रधानमंत्री का सबसे प्रमुख कार्य होता है, मन्त्रिपरिषद का निर्माण करना। इस मंन्त्रिपरिषद का गठन प्रधानमंत्री के परामर्श से राष्ट्रपति करता है।
मन्त्रिपरिषद के निर्माण के पश्चात् प्रधानमंत्री का अगला कार्य विभागों का बंटवारा होता है। परिणामस्वरूप मन्त्रिमण्डल का गठन होता है। इस मन्त्रिमण्डल के गठन में पूर्ण विवेकाधिकार प्रधानमंत्री का होता है। साथ ही वह किसी मंत्री से त्यागपत्र मांग सकता है या पदच्युत करने की राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकता है।
मंत्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करना तथा समस्त विभागों के मध्य समन्वय स्थापित करना।
अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारतीय प्रधानमंत्री का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है, चाहे विदेश विभाग प्रधानमंत्री के हाथ में न हो, फिर भी अन्तिम रूप से विदेश नीति का निर्धारण प्रधानमंत्री के द्वारा ही किया जाता है।
भारतीय विदेश नीति का मुख्य प्रवक्ता भी प्रधानमंत्री माना जाता है।
प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का प्रधान होता है, साथ ही अभी तक वह नीति आयोग (पहले योजना आयोग) का पदेन अध्यक्ष होता है।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय विकास परिषद का अध्यक्ष होता है। - अनुच्छेद 78 के अनुसार ‘‘ प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य है कि –
संघ के कार्यकलाप या प्रशासन सम्बन्धी या विधान सम्बन्धी मंत्रिपरिषद के सभी निर्णय राष्ट्रपति को सूचित करे।
संघ के कार्यकलाप या प्रशासन के सम्बन्ध में या कानून के सम्बन्ध में राष्ट्रपति द्वारा मांगी गयी जानकारी उसे दे।
राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षा किए जाने पर किसी ऐसे विषय को मंत्रिपरिषद के समक्ष विचार के लिए रखे, जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर लिया है, किन्तु मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया है।
उपप्रधानमंत्री
- भारतीय संविधान में कोई प्रावधान नहीं है।
राजनीतिक दलों के दलीय प्रबंधन के लिए – राजनीतिक संतुष्टि के लिए।
संवैधानिक पद नहीं, यह राजनीतिक पद।
आज तक 8 उपप्रधानमंत्री – पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल और अंतिम लाल कृष्ण अडवाणी।
केबिनेट के अन्य सदस्यों की स्थिति तथा उपप्रधानमंत्री की स्थिति में कोई अंतर नहीं है।
उपप्रधानमंत्री प्रधानमंत्री के बाद शपथ लेता है।
प्रधानमंत्री के बाद उसकी स्थिति दूसरे स्थान पर होती है।